स्त्री और वासना

स्त्री उस पुरुष को खोजती है जो प्रेम के योग्य हो।

उसे वासना नहीं। चाहिए। उसे शुद्ध प्रेम, वह भी गहराई से करने वाला चाहिए।

वासना के सतह पर उलझा मनुष्य प्रेम की नहीं शरीर की मांग करता है। वासना प्रेम को कभी भी नहीं समझ सकता और ना कभी समझेगा। इसलिए स्त्री हमेशा कहती रहती है कि उसने कभी उसे समझा नहीं है। स्त्री कि यह बात अर्थात आरोप सत्य है । वासना कभी भी पूर्ण नहीं होता । वासना तो बढ़ती रहती है। वह कभी भी पूर्ण नहीं होता है ।

वासना से भरा पुरुष हमेशा स्त्री को वासना का एक साधन ही समझता है वह उसे पुज्या नहीं भोग्या ही समझता है। वह हर पल वासना की दृष्टि से देखते रहता है। वह उसे प्रेम कि नजर से नहीं देखता है। जबकि स्त्री सदैव प्रेम से भरी रहती है। वह सदैव पूर्ण रहती है।

स्त्री की निरंतर एक ही खोज चलती रहती है। वह सुन्दर पुरुष को खोज नहीं करती है। वह एक प्रेम करने वाला और उसे समझने वाला पुरूष की खोज करती है। स्त्री की खोज कभी भी नहीं रुकती है। वह सदैव उसे ही खोजती है। जिस पर वह अपने प्रेम की वर्षा करे। स्त्री की इसी निरंतर खोज पर पुरुष उसके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगा देता है। एक विफल पुरुष और कर भी क्या सकता है। केवल स्त्री पर प्रश्न चिन्ह लगाने के सिवाय ।

स्त्री, पुरुष में वासना नहीं, वह सदैव प्रेम खोजती रहती है। वह प्रेम के गहनता तक उतरना चहाती है। वह रूह तक प्रेम का स्पर्श करना चहाती है। वह अमर प्रेम खोजती है जो एकरुपता से उसे प्रेम करें। प्रेम की बरखा में रंग जाना चहाती है। वह प्रेम से रंगने वाला रंगरेज खोजती है। और शायद इसीलिए स्त्री प्रेम की चाह में अपना देह सौंपती है और पुरुष देह की लालसा में प्रेम करता है…

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शादी शुदा स्त्री अक्सर कर बैठती हैं #इश्क़

मांग में सिंदूर होने के बावजूद

जुड़ जाती है किसी के अहसासों से

कह देती है उससे कुछ अनकही बातें

ऐसा नहीं की वो बदचलन हैं

या उसके चरित्र पर कोई दाग़ हैं।

तो फिर क्या है जो वो खोजती हैं

सोचा कभी स्त्री क्या सोचती हैं।

तन से वो हो जाती हैं शादीशुदा

पर मन कुंवारा ही रह जाता है।

किसी ने मन को छुआ ही नहीं

कोई मन तक पहुंचा ही नही

बस वो रीती सी रह जाती हैं।

और जब कोई मिलता है उसके जैसा

जो उसके मन को पढ़ने लगता हैं।

तो वो खुली किताब बन जाती हैं।

खोल देती है अपनी सारी गिरहैं।

और नतमस्तक हो जाती हैं सम्मुख

स्त्री अपना सबकुछ न्योछावर कर देती हैं।

जहाँ वो बोल सके खुद की बोली

जी सके खुद के दो पल

बता सकें बिना रोक टोक अपनी बातें

हंस सके एक बेख़ौफ़ सी हसीं

हां लोग इसे इश्क ही कहते है

पर स्त्री तो बस दूर करती है।

अपने मन का कुंवारापन

A woman seeks a man who is worthy of love.

He doesn’t have lust. Needed He needs pure love, that too deeply.

Man entangled on the surface of lust demands body, not love. Lust can never understand love and will never understand. That’s why the woman always says that she has never understood him. This statement of the woman means the allegation is true. Lust never gets fulfilled. Lust keeps on increasing. It is never complete.

A man full of lust always considers a woman as a means of lust, he does not consider her as a worship but as a bhogya. He keeps looking at every moment with lust. He does not look at her with the eyes of love. While the woman is always full of love. It is always complete.

There is only one continuous search for a woman. She doesn’t search for a handsome man. She searches for a man who loves and understands her. The search for a woman never stops. She always seeks him. On whom he showers his love. On this continuous search of a woman, a man puts a question mark on her character. What else can a failed man do. Except putting question mark on woman only.

A woman does not have lust in a man, she always keeps on searching for love. She wants to descend to the depth of love. She wants to touch love till the soul. She seeks immortal love who will love her with oneness. Wants to get colored in the rain of love. She finds a dyer who dyes with love. And maybe that’s why a woman surrenders her body in the desire of love and a man loves in the longing of the body…

 

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