जय श्री कृष्ण जी।।
The Hanuman Mantra
आज से लगभग 70 वर्ष पूर्व वृन्दावन में मदन मोहन जी मंदिर के निकट किसी कुटिया में अन्धे बाबा रहते थे !
उनका नाम कोई नहीं जानता था, सब लोग उन्हें मदन टेर के अन्धेबाबा के नाम से पुकारते थे,
क्योंकि वे मदन टेर पर ही अधिक रहते थे ! दिन भर राधा कृष्ण की लीलायों का स्मरण कर हुए आँसू बहाते ! संध्या समय गोविन्द देव जी के मन्दिर में जाकर रो-रो कर उनसे कुछ निवेदन करते हुए चले आते,
लोटते समय 2-4 घरो से मधुकरी मांग लेते और खाकर सो जाते ! पर आते-जाते, खाते-पीते हर समय उनके आँसू बहते रहते !!!!!
आँसू बहने के कारण वे अपनी दृष्टि खो बैठे थे…. पर इस कारण वे तनिक भी घबराये नहीं, घबराना तो तब होता जब वे इस जगत से कोई सरोकार रखते,
जिसका नेत्रों को दर्शन वो करते थे…उनके नेत्रों की सार्थकता थी केवल प्रभु दर्शन में. …जो नेत्र प्रभु का दर्शन नहीं करा सके थे ,उनका ना रहना ही अच्छा था उनके लिए…!!!!!
पर अब दिन-रात रोते-रोते 40 साल बीत चुके थे..जीवन की संध्या आ पहुँची थी….!!!! अब उनसे रहा ना जाता… विरह वेदना असहय हो चली थी..
वे कभी-कभी उस वेदना के कारण मूर्छित हो घंटो मदन टेर की झाड़ियो के बीच अचेत पड़े रहते थे…!!!
उनसे सहानुभूति करने वाला वहां कोई ना था , केवल वहां के पक्षी मोर, कोकिल आदि अपने कलरव से उनकी चेतना जगाने की चेष्टा किया करते….
एक दिन जब वे मदन टेर पर बेठे रो रहे थे , तो राधा कृष्ण टहलते हुए उधर आ निकले….
बाबा को रोते देख राधा जी ने श्री कृष्ण को कहा….. ” प्यारे या बाबा बड़ो रोये है जाकर हँसा दो….
श्री कृष्ण ने बाबा के पास जाकर कहा…. बाबा क्यों रो रहे हो.. आप को किसने मारा है….. कोई आपसे कुछ छीन के ले गया है….?
बाबा ने कहा…. ” ना , तू जा यहाँ से “श्री कृष्ण ने कहा.. “बाबा आप के लिए कुछ ला दूँ , रोटी ला दूँ और कुछ कहे सो ला दूँ , तू पर रो मत”
बाबा ने कहा… ” तू जा ना जा के अपनी गईया चरा , तुझे काह मतलब मुझसे “
कृष्ण ने राधा जी से जा कर कहा…. ” बाबा तो नहीं मान रहे मुझसे , और बहुत रो रहे है..
राधे ने कहा..” प्यारे तुम नहीं हँसा सके उनको….अब मैं हंसाती हूँ उनको..
श्री राधे ने बाबा के पास जाकर कहा…. “बाबा तू क्यों रो रहा है ? तेरा कोई मर गया है क्या…. ?
बाबा हँस दिए और बोले.लाली मेरा कोई नहीं है.तो राधे बोली.अच्छा तो, जब तेरा कोई नहीं है तो तू क्यों रो रहा है.?
“बाबा बोले..लाली मैं इसलिए रो रहा हूँ, क्योंकि जो मेरा है वो मुझे भूल गया है.
श्री राधे बोली. कौन है तेरा बाबा..?
बाबा बोले. तू ना जाने ब्रज के छलिया के भजन करते-करते मैं बुड़ा हो गया. और उसने एक झलक भी नही दिखाई.
और लाली क्या कहूँ.उसके संग से लाली.राधे भी निष्ठुर हो गयी है.
राधे चौंक पड़ी और बोली.. मैं-मैं निष्ठुर…. दूसरे ही पल अपने को छिपाते बोली… मेरो नाम भी राधे है , तू बता तू का चाहे.
बाबा बोले.. भोरी तो तू है.जिस समय वे अपने कर-कमलों से स्पर्श करेंगे. आँख में ज्योति ना आ जाएगी.
भोरी लाली से और रहा ना गया… उसने अपने कर-कमलों से बाबा की एक आँख स्पर्श कर दी.
उसी समय कान्हा ने भी बाबा की दूसरी आँख स्पर्श कर दी.
स्पर्ष करते ही बाबा की आँखों की में ज्योति आ गयी. सामने खड़े राधा कृष्ण के दर्शन कर वे आनंद के कारण मूर्छित हो गए.
मूर्छित अवस्था में वे सारी रात वही पड़े रहे.
प्रातः काल वृन्दावन परिक्रमा में निकले कुछ लोगो ने उन्हें पहचान लिया. वे उन्हें उसी अवस्था में मदन मोहन जी के मंदिर ले गए.
मंदिर के गोस्वामी समझ गए की उनके ऊपर मदन मोहन जी की विशेष कृपा हुई है.
उन्होंने उन्हें घेर कर सब के साथ कीर्तन किया.
कीर्तन की ध्वनि कान में पड़ते ही उन्हें धीरे-धीरे चेतना हो आई.
तब गोस्वामी जी उन्हें एकांत में लेकर गए.. उनकी सेवा के बाद जब उन्होंने उनसे मूर्छा का कारण पूछा तो.. उन्होंने रो- रो कर सारी घटना बता दी.
बाबा ने जिस वस्तु की कामना की थी. वह उन्हें मिल गयी.
फिर भी उनका रोना बंद नहीं हुआ.रोना तो पहले से और भी ज्यादा हो गया.
राधा कृष्ण से मिल कर बिछुड़ जाने का दुख उनके ना मिलने से भी कही ज्यादा तकलीफ वाला था.
इस दुःख में रोते-रोते वे कुछ दिन के बाद जड़ देह त्याग कर सिद्ध देह से उनसे जा मिले..!
जय श्री कृष्ण जी।।