ईर्ष्या को कैसे दूर करें? Inspiring Story

ईर्ष्या Hindi Storyईर्ष्या को कैसे दूर करें?

एक बार की बात है, अरुण और करण दो अच्छे दोस्त थे। वे बचपन से ही साथ पढ़ रहे थे। पढ़ाई हो या खेल-कूद या कोई पढ़ाई के अलावा कोई गतिविधि, अरुण हमेशा करण से आगे रहता था।
अरुण को हमेशा स्कूल के सभी कार्यक्रमों में प्रदर्शन करने के लिए चुना जाता था और वह पूरे स्कूल में प्रसिद्ध था। करण हर बार अरुण को पछाड़ने की कोशिश करता लेकिन वह कभी सफल नहीं होता।
एक दिन जब करण घर लौटा तो उसका चेहरा उदास था। जब उसकी माँ ने देखा तो उसने कहा, “तुम इतने उदास क्यों दिख रहे हो?”
करण ने गुस्से वाले चेहरे से जवाब दिया,“इन सबकी वजह अरुण है। एक बार फिर उसने मुझसे अधिक अंक प्राप्त किए हैं। मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ लेकिन वह हमेशा मुझसे आगे ही रहता है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं हमेशा पीछे क्यों रहता हूँ?”
माँ ने पूछा, “क्या तुम अरुण से ईर्ष्या करते हो?”
करण ने जवाब दिया, “नहीं.. नहीं, मुझे उससे जलन क्यों होगी। वह तो मेरा अच्छा दोस्त है।”
माँ ने उत्तर दिया, “ठीक है! मेरी बात ध्यान से सुनो और बताओ कि तुम सहमत हो या नहीं?”
करण मान गया और सुनने लगा।
माँ ने आगे कहा, “जब लोग अरुण की तारीफ करते हैं तो तुमको अच्छा नहीं लगता!, जब वह हार जाता है तो तुमको खुशी होती है!
वह जो कुछ भी करता है तुम वह सब करने के लिए कोशिश करते हो! तुम उसमें नकारात्मक गुण देखते रहते हो और उसके प्रति नापसंद का भाव रखते हो! तुम्हारा मन, दूसरों को उसकी नकारात्मक बातों के बारे में बताने का करता है! तुम दिन भर ईर्ष्या की आग में जलते रहते हो! मुझे बताओ, क्या तुम यह सब महसूस करते हो या नहीं?”
करण ने जो कुछ सुना उससे वह दंग रह गया और बोला, “यह सच है लेकिन आपको इसके बारे में कैसे पता चला?”
माँ ने उत्तर दिया, “तुम्हारा उदास चेहरा देख कर! लेकिन मेरे पास तुम्हारी इस ईर्ष्या को दूर करने का एक बढ़िया उपाय है।”
करण ने जवाब दिया, “वह क्या है? कृपया मुझे बताओ।”
माँ ने उत्तर दिया, “जब तुम दूसरों में सकारात्मक गुणों की दिल से सराहना करते हैं, तो वे गुण आप में भी प्रकट हो जाते हैं। हमारी ताकत बढ़ती जाती है और दूसरों में सकारात्मकता को दिल से स्वीकार करने से उस व्यक्ति के प्रति हमारी ईर्ष्या पूरी तरह से विलीन हो जाती है।
इसलिए तुमको भी अरुण के सकारात्मक गुणों की, अपने दिल की गहराई से सराहना करनी चाहिए।”
यह सुनकर करण ने गुस्से भरे चेहरे से उत्तर दिया, “सकारात्मक गुण? और वह भी अरुण में? ढूँढने पर भी मुझे उनमें एक भी सकारात्मक गुण नहीं मिल रहा है।”
माँ ने जोर देकर पूछा, “तुम्हे मिल नहीं रहा है या तुम ढूँढना नहीं चाहते हो?”
करण ने अवाक होकर नजरें नीची कर लीं ।
माँ ने कहा, “ठीक है! बताओ तुम परीक्षा की तैयारी कब से शुरू करते हो?”
करण ने जवाब दिया, “एक हफ्ते पहले।”
माँ ने पूछा, “और अरुण?”
करण ने सोचा और जवाब दिया,“वह रोज पढ़ता है। एक बार उनके पिता ने मुझसे कहा कि अरुण हमेशा अपनी समय सारणी का पालन करता है। उसने टीवी देखने, खेलने और दोस्तों के साथ बातें करने के लिए समय निश्चित कर रखा है और वह समय इस सारिणी का लगन से पालन करता है।”
माँ ने उत्तर दिया, “तो यही सही प्रबंधन कौशल है। और यह साबित करता है कि वह ईमानदार और मेहनती है।”
करण ने हाँ में सिर हिलाया।
माँ ने कहा, “ईर्ष्या करने के बजाय, यदि तुम उसके सकारात्मक गुणों की सराहना करोगे, तो यह गुण भी तुम में विकसित होने लगेंगे।”
करण को एक नई प्रेरणा मिल गई और उस दिन के बाद, उसे अपनी माँ की शिक्षा हमेशा याद रखी और उसने अरुण के अनुशासन, ईमानदारी, एकाग्रता और मेहनती गुण को पहचान कर उनकी सराहना करनी शुरू कर दी।
कुछ ही समय में वह भी अरुण की तरह ईमानदार और मेहनती हो गया।
परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद करण माँ के पास गया तो वह बहुत खुश लग रहा था। माँ मुस्कुराई और बोली, “क्या बात है? तुम आज बहुत खुश लग रहे हो!”
करण ने जवाब दिया, “हाँ! मुझे आज मेरी बदली सोच का परिणाम मिल गया है। अरुण फिर प्रथम रहा जबकि मैं द्वितीय स्थान पर रहा हूँ।
सबसे अच्छी बात यह है कि आज मुझे उससे बिल्कुल भी जलन नहीं हो रही है। मैं अपनी प्रगति को देखकर खुश हूँ और साथ ही मैं उसके परिणाम से भी खुश हूँ।”
करण ने आगे कहा, “धन्यवाद माँ। आपने मुझे ईर्ष्या को दूर करने का उत्कृट उपाय दिया। ईर्ष्या के कारण मेरी सारी ऊर्जा नष्ट हो गई थी।
अब, मैं अपनी ताकत को प्रगति के पथ पर ले जा सकता हूँ।”
माँ ने खुश होकर करण को गले लगाया और उसके अच्छे काम और प्रगति के लिए बधाई दी।

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